न्याय की उम्मीद: वित्तीय संकट और ऋण निपटान के कानूनी रास्ते ------------ सुधाकर कुमार, एडवोकेट, पटना हाई कोर्ट
परिचय
आज के समय में वित्तीय समस्याएं आम हैं, लेकिन जब कोई व्यक्ति ईएमआई नहीं चुका पाता, तो बैंकों की कार्रवाई उसके परिवार को बेघर कर देती है। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है, जब परिवार में 80+ उम्र के बुजुर्ग, नाबालिग बच्चे और महिलाएं हों। ऐसे में, "वन टाइम सेटलमेंट" (OTS) और कानूनी प्रावधान ही न्याय का आधार बन सकते हैं।
एनपीए (NPA) क्या है?
जब कोई ऋण 90 दिनों तक चुकाया न जाए, तो उसे नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) घोषित कर दिया जाता है। इस स्थिति में बैंक संपत्ति जब्त कर सकते हैं, लेकिन SARFAESI एक्ट, 2002 की धारा 13(3A) के तहत उधारकर्ता को बैंक के ग्रीवेंस अधिकारी से शिकायत करने का अधिकार है।
कानूनी संरक्षण और समाधान
1. RBI का OTS दिशानिर्देश :
आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिए हैं कि वे वित्तीय संकट में फंसे उधारकर्ताओं के साथ वन टाइम सेटलमेंट का विकल्प दें। यह सेटलमेंट किश्तों में भी हो सकता है। उधारकर्ता को बैंक प्रबंधन को अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए OTS का प्रस्ताव देना चाहिए।
2. DRT में अपील:
RDDBFI एक्ट, 1993 के तहत, उधारकर्ता डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (DRT) में अपील कर सकता है। DRT बैंकों को मानवीय आधार पर ऋण पुनर्गठन या सेटलमेंट का निर्देश दे सकता है।
3. निष्कासन पर रोक:
SARFAESI एक्ट की धारा 17 के तहत, यदि बैंक ने कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया है, तो DRT में निष्कासन के आदेश को चुनौती दी जा सकती है। साथ ही, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 340 (जबरदस्ती रोकना) और धारा 506 (आपराधिक धमकी) का भी सहारा लिया जा सकता है।
4. इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016:
इस कानून के तहत, उधारकर्ता अपनी वित्तीय स्थिति साबित करके ऋण राहत प्राप्त कर सकता है।
मानवाधिकार और न्यायिक दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने विशाल एन. कलसरिया vs. बैंक ऑफ इंडिया (2016) के मामले में स्पष्ट किया कि बैंकों को संपत्ति जब्त करते समय मानवीय पहलुओं पर विचार करना चाहिए। ठंड के मौसम में बुजुर्गों और बच्चों को बेघर करना अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है।
क्या करें?
- बैंक को OTS का लिखित प्रस्ताव भेजें।
- DRT या उपभोक्ता फोरम में केस दर्ज करें।
- निष्कासन के खिलाफ जिला कलेक्टर या कानूनी सहायता सेल से संपर्क करें।
- राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (SLSA) से मुफ्त कानूनी सहायता लें।
निष्कर्ष
ऋण चुकाने में असमर्थता अपराध नहीं, बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है। बैंकों और उधारकर्ताओं के बीच संतुलन बनाने के लिए RBI दिशानिर्देश, SARFAESI एक्ट, और न्यायिक हस्तक्षेप ही रास्ता हैं। याद रखें: कानून सबके हितों की रक्षा करता है, बस उसे सही तरीके से इस्तेमाल करना आना चाहिए।
लेखक: सुधाकर कुमार, पटना हाई कोर्ट
नोट: यह ब्लॉग सामान्य जानकारी के लिए है। व्यक्तिगत मामलों में वकील से सलाह लें।
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